This one one of the poems very close to my heart.....i have always feared to put my such poems on the blog......donno what people would feel and think...dont know what made me write this....please excuse me if something doesnt fit...this is a very long poem...very sry fr that ,but couldnt have written in less than this......read only if u r patient........
याद चली आती है ....................
जब दूर नीले आसमान में,सूरज कहीं छुपता सा लगता है ,
जब ठंडी हवा ,धीमें धीमें ,कानों में गुदगुदी कर जाती है ,
जब उड़ती चीड़िया की हलचल ,फूलों के रंग कुछ पराये से लगते हैं,
तब ठंडी साँसों में जान भरतीउसकी याद चली आती है ,
मैं कमरे की दीवारों को देखता ,कुछ यादें समेटता हूँ ,
आँखों के परदे पर ,उन्हीं हसीं लम्हों को फ़िर फ़िर देखता हूँ ,
खुद से अनजान मैं ,न जाने कब तक यूं ही सोचता हूँ ,
खीलते होठों की हँसी ,आखों की नमी दोनों को रोकता हूँ
मेरी इस बेबसी से अनजान है वह ,सब जान के भी नादान है वह ,
जब सब्र का बाँध टूटता है ,तो वह आँसू बन आती है ,
बेबस मैं रह जाता हूँ ,जब उसकी याद चली आती है ,
समय फिसला जाता है ,बाहर अँधेरा छाता है ,
पर मैं यादों की रोशनी में ,कहीं खोया सा रह जाता हूँ ,
बहुत कुछ सोचता हूँ ,पर कुछ न कह पाता हूँ ,
काश मेरे दील की बात ,आँखों से समझ जाती वो ,
मेरे अधूरे सपनों को ,पूरा कर जाती वो ,
फिर मेरे दील को ,इन शब्दों का सहारा न होता ,
कश्ती में तुम साथ होती ,तो मैं भटका किनारा न होता ,
खुद से गद्दार बन मैं ,बहुत रीत से भूलता हूँ उसे ,
वो तो चली गयी ,पर जालीम यादें नहीं जाती हैं
लाख कोशिश करूँ ,पर उसकी याद चली आती हैं ,
दोस्त कमरे मैं झाँक ,मुझे पत्थर सा बेजान पाते है ,
कोई खाने को बुलाते है ,कोई खेलने बुलाते है ,
पर मैं खुद से मजबूर ,
ग़म के घाव पर हँसी की चादर बिछाए बहाने बनाता हूँ ,
मेरी कीस्मत है की ,वो जान नहीं पाती क्या बात है ,
क्यों बाहर पूनम की रोशनी है ,मेरे दील में काली रात है ?
वो मुझे दुनीया को ख़ुशी का मुखौटा दिखाना सिखाती है ,
फ़िर हँसी को सीसाकीयों मैं बदल उसकी याद चली आती है ,
सोचता हूँ ,क्यों ये दर्द मैंने ही पाल रखा है
शाम से सुबह तक का सफर ,क्यों गम में काट रखा है ,
हाँ ,गलती मेरी थी ,मैं उसे कुछ कह न पाया ,
पर उस छोटी ग़लती का ,इतना बड़ा साया???
कब तक ,आखीर कब तक ,यूँ ही यादों से लड़ता रहूँगा ,
यूँ ही कमरे की दीवार पर ,उन्हें समेट ,सड़ता रहूँगा ,
रह रह कर वह फिर हसीं सपने दिखाती है ,
और मैं लाचार रह जाता हूँ , जब उसकी याद चली आती है ,
अब तो लगता है दीवारों का दृश्य भी धूमील सा हो गया है ,
साँसों की सीसकीयाँ बन ,धड़कन से मिल गया है ,
अब ज़्यादा देर और नहीं खुली रहेंगी ये पलकें ,
दम भी घुटना शुरू हो गया है हलके हलके ,
पर फीर भी न जाने ,क्यों एक आस बाकी है ,
एक बार ,सिर्फ एक बार,तुम्हें देखने की प्यास बाकी है .
मैंने तो रिश्ता तुमसे जोड़ा था , तुम्हारी यादों से नहीं ,
वफादारी भी तुम्हीं से निभाई थी तुम्हारे वादों से नहीं
तुम आओगी जरूर ,ऐसा वीश्वास है मेरा ,
साँसों के चलते आओ ,या सफ़ेद चादर तान लेने के बाद ,ये चुनाव है तेरा
और ये जो तुम्हारी बचपन से आदत है,हमेशा देर से आने की
और फिर देर हो जाने के मुझे हज़ार बहाने बताने की ,
अब देर हुई तो बहाने किसे सुनाओगी?
कयोंकी तुम मुझे फूल लीये इंतजार करता नही , इंतजार का शहीद पाओगी .
और हाँ ,अगर तुम अब भी सोचती हो की नखरे देख तुम्हारे मैं मान जाऊंगा
आंखों के आँसू और मुह पर "माफ़ी " के जज्बात पहचान जाऊंगा ,
तो तुम शायद आज भी सही हो ,
हाँ हाँ ,शायद तुम आज भी मजबूत हो मेरी कमजोरी के आगे ,
कयोंकी मेरी डोर तो आज भी पक्की है कच्चे हैं तुम्हारे ही धागे ,
सो जाऊंगा ,हाँ हमशा के लीये सो जाऊंगा ,
खो जाऊंगा,इन्हीं यादों मैं कहीं खो जाऊंगा ,
पर तुम आना जरूर ,भले ,हमेशा की तरह देर से ,
ठंडे हो चुके हांथों को थाम ,कानों मैं कुछ कह जाना जरूर पयार से
वैसे चाहो तो भीगे आंखों को अपनी चुन्नी से पोछ जाना
इस एहसान की कीमत नहीं जानेगा ये ज़माना
कयोंकी मैं ऊपर आसमानों में खड़ा भी तुम्हारा इंतजार करता रहूंगा ,
तन तो धरती पर छोड़ जाऊंगा ,पर यादों से बार बार मरता रहूंगा .
और हाँ मेरे सीने से लिपटा तुम्हारा रुमाल अब तुम ले जाना ,
कयोंकी अब बहुत देर हो गयी,नहीं चाहीए अब मुझे कोई मीलने का बहाना ,
तुम्हारी यादों में मैंने कुछ चीत्र भी बनाए थे तुम्हारे मगर ,
मेरी चीता के साथ जला देना ,बहुत एहसान होगा ,जला सको अगर ,
और हाँ ,तुम्हारी चीट्ठीयां भी फाड़ लेना दीवार से .
कहीं कोई पढ़ न ले उन्हें ,भरोसा उठ जाएगा दुनीया का पयार से
जीनदगी भर जो यादें तद्पाती रही अब वही आराम दिलाती हैं ,
जीवन तो क्या ,मृत्युद्वर तक उसकी याद चली आती है .
ऊपर लीखी हुई मेरी ही कवीता को पढ़ कर मेरे दिल में ये कुछ शब्द आ रहे हैं,
" अब अगर आओ तो जाने के लीये मत आना,
सीर्फ एहसान जताने के लीये मत आना,
मुझसे मिलने की नहीं अगर तुम्हें चाहत कोई,
तो please सीर्फ रस्में ,नीभाने के लिए मत आना”
dunn hv nething to say.. this is beyong ne comments....
ReplyDeletethanx alot dear......u could have posted this with ur name...
ReplyDeletesry boss..aadat ho gayi hai anon ki :)
ReplyDelete""i have always feared to put my such poems on the blog......donno what people would feel and think...please excuse me if something doesnt fit..."""".....since when have u started writing for people? its just urs , no such explanations required dear...its plainly ""---------"" (beyond all adjectives, as i said) :)
its like each time you read this .. you shiver.. some memories burried deep within you, suddenly conquer you mind and however hard you try n battle with them.. there's no escape...
ReplyDeleteknow what... its "hypnotizing" !!!!
tumhe shayad khud nahi pata tumne likha kya hai....
ReplyDeletearey yaar itna pyaar is dil mein bharkar muskuraate hue ek jugnu ki moorat bankar tumne haamre jeevan mein kuch hi kshanon mein itna prakaash bikher diya ki shayad uski roshni aaj bhi hamari aankhon ko chondhiyaan deti hai..kammal kiya hai lafzon se tumne..waah waah..maashallah..
ReplyDeletehaan lekin ek baat kehna chahoonga..ki kabhi uski yaadon ko leke dukhi mat hona..kyonki tumne ek aise insaan ko khoya hai jisne kabhi tumhein chaha hi nahi par usne ek aisa dost khoya hai jo use jaan se jyada chahata tha...
ek aur baat..pyaar ko apni taakat banana kamjori nahi...dekhna duniya ek din tumhaare kadam choomegi!!
thanx pallav...thank u soooo much...i would be ever grateful to u for comment and lovely peace of advice...by the way...i have always been single..i mean,this poem is not an outcome of some ditch...its pure imagination...cheers!!
ReplyDeletebut ur imagination ... an imagination so true? so real.. kahan se aayi feel??
ReplyDeletei know its said it just takes a pen and a heart... but does it.. tumhe andaaza bhi hai ki tumne likha kya hai..
ReplyDeleteu talk about people posting comments here... comments, u know them all... infact.. u very well know how many cried reading this..
ReplyDeletewaiting for the next one.. i know 'a next one' is waiting .. :)
ReplyDeletewaiting for the next one.. i know 'a next one' is waiting .. :)
ReplyDeleteya sure waiting for the next one......by the way..about the last days talk..i thought a lot....i mean it....i think i never wrote for others but for me...did i?
ReplyDeletehey... waiting for the next one...
ReplyDeletenxt one ??
ReplyDeletein shabdon ki main kya taarif karun,ye shabd taarif ke mauhtaj nahi,dekhta hun jab main inko,gamon ke badal ko chir kar nikli,pyaar ke ansu dikhte hain,dekh ke inko ankhe nam ho jaati hai,mehsu karta hun jab dard ye saanse bhi tham jaati hain,kya khub hai wo insaan jisne ye darde bayaan likha hai,pyar ko na samjhne walon k liye ek khubsurat paigam likha hai,
ReplyDeleteu rock vivek..............
jabardast............
thank uuu,,thanx alot sumit...u r poetic indeed :)
ReplyDeletebahut feelings hai really....poem ki intensity bahut kamaal ki lagee humko
ReplyDeletehaan spelling mistakes bahut zyaada hai,maybe because of this typing thing..dhyaan dijiyega :P
keep writing...dil se jo niklega bahut achha hoga...
gulzar saab ke shabd...
"ek tera naam hi mukammal hai,isse behtar bhi nazm kya hogi"